धरती माँ कि सेहत के लिए प्राकृतिक खेती करे

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  • पंचम वैज्ञानिक परामर्शदात्री समिति की बैठक संपन्न

    कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर की पंचम वैज्ञानिक परामर्शदात्री समिति की बैठक संपन्न

     

                    कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर जिला नर्मदापुरम की पंचम वैज्ञानिक परामर्शदात्री समिति की बैठक आज दिनांक 27.06.2023 को कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर के डॉ. ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम सभागार में आयोजित की गयी जिसकी अध्यक्षता निदेशक, भा.कृ.अनु.प.- कृषि तकनिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान,जबलपुर डॉ. एस.आर. के. सिंह ने की बैठक में संचालक विस्तार सेवाए जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्व विद्यालय से प्रतिनिधि डॉ संजय वेशम्पायन, उपसंचालक कृषि श्री जे.आर. हेडाऊ, उपसंचालक उद्यानकी श्रीमति रीता उइके, जिला विकास प्रबंधक (नाबार्ड) जिला नर्मदापुरम श्री दीपक पाटिल एवं वन विभाग के प्रतिनिधि डिप्टी रेंजर बनखेडी श्री विष्णु पुजारी, बीज प्रमाणीकरण अधिकारी श्री पवन सिंह पवार, कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर के अध्यक्ष श्री अनिल अग्रवाल, भाऊसाहब भुस्कुटे स्मृति लोक न्यास गोविंदनगर के सहसचिव श्री केशव माहेश्वरी, सदस्य श्री भूपेन्द्र सिंह पटेल, श्री अनिल बरोलिया, श्री मनोज राय  एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिको एवं जिले के प्रगतिशील कृषको की उपस्थिति में संपन्न की गई । सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन किया गया, तत्पश्चात मंचासीन अतिथियों को श्रीफल एवं मोमंटो प्रदान कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया ।

     

                 

     

                  बैठक के पूर्व रबी 2022-23 की चतुर्थ वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक में आये सुझाव के परिपेक्ष्य में की गई कार्यवाही  के बारे में बताया गया इसके साथ ही रबी, जायद की प्रगति  एवं खरीफ 2023 की कार्य योजना केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं  प्रमुख डॉ संजीव कुमार गर्ग ने समिति के अध्यक्ष एवं सम्मानीय सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत की तत्पश्चात सामूहिक चर्चा एवं सुझाव आमंत्रित किये गये ।

     

            उपसंचालक महोदय द्वारा उद्बोधन देते हुए कहा कि जिले मे आने वाले समय मे बासमती धान का रकबा बढ़ेगा, मूंग  की पैदावार सबसे ज्यादा नर्मदापुरम जिले मे होती है। जिले की सबसे बड़ी समस्या असंतुलित उर्वरक का उपयोग, नरबाई जलाना, मूंग मे अधिक मात्रा में कीटनाशक का उपयोग करना है, इसे रोकने के लिय स्वयं किसान को इसके लिए आगे आना पड़ेगा, आगे बताते हुए हेड़ाऊ जी ने कहा की प्राकृतिक खेती के लिए कम से कम एक एकड़ से शुरुआत करना चाहिए साथ ही किसान को धैर्य रखने की जरुरत है क्योंकि इसका परिणाम 3 वर्ष बाद दिखेगा ।

     

             डॉ. संजय वेशम्पायन जी द्वारा श्री अन्न एवं प्राकृतिक खेती पर मार्गदर्शन देते हुए कहा कि श्री अन्न से निर्मित व्यंजन पर महिलाओ को प्रशिक्षण देना चाहिए । प्राकृतिक खेती मे पौध संरक्षण हेतु सौर उर्जा पर आधारित प्रकाश प्रपंच तथा अन्य ट्रेप का उपयोग किसान बंधु करें।

     

     

                अंत मे निदेशक डॉ. एस. आर. के. सिंह जी द्वारा मार्गदर्शन प्रदान करते हुए किसान बंधुओ को सबसे बढ़ा कृषि वैज्ञानिक कहा साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा किसानो के हित मे किये जा रहे कार्यो को सबके समक्ष रखा गया, उन्होंने आगे बताते हुए कहा की अगले वर्ष कृषि विज्ञान केंद्र अपना स्वर्ण जयंती वर्ष मनाने जा रहा है। सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य धन होता है इसलिए खेत मे स्वयं के खाने के लिए प्राकृतिक फसल, सब्जी उगाए एवं उसका सेवन करें।


               

     

                बैठक में प्रगतिशील कृषक श्री गोपाल कुशवाहा, श्री बलकिशन कुशवाहा, श्री शरद वर्मा, श्री दिनेश चौधरी, श्री अंकित पटेल, श्री सुभाष पटेल एवं जिले के अन्य प्रगतिशील किसान, कृषि विज्ञान केंद्र गोविन्दनगर से वैज्ञानिक श्री ब्रजेश कुमार नामदेव, डॉ देवीदास पटेल, डॉ.आकांक्षा पांडे, श्री लवेश चौरसिया, श्री राजेन्द्र पटैल, डॉ प्रवीण सोलंकी, श्री पंकज शर्मा, श्री विकास मोहरीर, श्री राहुल माझी एवं अन्य स्टाफ उपस्थित रहे  | 

     

     

                कार्यक्रम के अंत मे आभार प्रदर्शन कृषि विज्ञान केंद्र गोन्दनगर के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ संजीव कुमार गर्ग द्वारा किया गया।

     

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    गोविन्द तरल जैव उर्वरक ( ट्राइकोडर्मा विरडी) " तरल जैव उर्वरक अपनाएं, मृदा की उर्वरता बढाए" लाभ पूर्ण रूप से जैविक पदार्थ । फफूंद जनित रोगों से बचाव में सहायक । फसल को रोग एवं कीट रोधी बनाता है । जड़ों को अधिक विकसित करता है । मृदा में लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या बढाता हैं। फसल में हरापन बढाकर बढ़वार में वृद्धि करता है। फसल की सभी अवस्थाओं में उपयोगी। बीज उपचार 2.5 मि.ली. तरल जैव उर्वरक को 1 कि.ग्रा. बीज की दर से बीज उपचार करें। मृदा उपचार: 1 लीटर तरल जैव उर्वरक को 50 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ प्रयोग करें । प्रयोग से पूर्व पदार्थ को अच्छे से हिलाएं । ठन्डे एवं छायादार स्थान पर भण्डारित करें। जैव उर्वरक का प्रयोग किसी भी रसायन के साथ मिलाकर नही करना चाहियें ।
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